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दशाश्वमेध घाट, वाराणसी का एक प्राचीन और महत्वपूर्ण घाट है, जिसका उल्लेख पुराणों में मिलता है। “दशाश्वमेध” का अर्थ है “दस अश्वमेध यज्ञ”, जो इस घाट की पौराणिक पृष्ठभूमि को दर्शाता है।

कहानी के अनुसार, राजा परमेश्वर ने एक बार दस अश्वमेध यज्ञ किए थे, जिनका उद्देश्य अपने राज्य की समृद्धि और शांति को बढ़ावा देना था। इन यज्ञों के बाद, उन्होंने यज्ञ के परिणामस्वरूप इस घाट का निर्माण कराया, जहां यज्ञ से प्राप्त सिद्धियों को ध्यान में रखते हुए स्नान और पूजा का महत्व बताया गया।

पुराणों में वर्णन मिलता है कि यहां स्नान करने से पापों का नाश होता है और आत्मा को मोक्ष की प्राप्ति होती है। मान्यता है कि जो भक्त इस घाट पर स्नान करता है, उसे स्वर्ग की प्राप्ति होती है। गंगा की पवित्र जलधारा में डुबकी लगाने से व्यक्ति के सभी दुख-दर्द समाप्त हो जाते हैं।

दशाश्वमेध घाट न केवल धार्मिक महत्व का स्थल है, बल्कि यह वाराणसी की सांस्कृतिक धरोहर का भी प्रतीक है। यहां हर शाम गंगा आरती का आयोजन किया जाता है, जो भक्तों और पर्यटकों को आकर्षित करता है। यह घाट भारतीय संस्कृति के अद्भुत उदाहरणों में से एक है, जो श्रद्धा, आस्था और भक्ति का केंद्र है

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